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भारतीय सिविल सेवा का एक संक्षिप्त इतिहास

 

कुमारिल- नमस्कार मित्रों, स्वागत है आपका भारत की कहानी में.

क्या आप जानते हैं की भारतीय civil services की शुरुआत कब और कैसे हुई? आज की चर्चा में, मैं कुमारिल और मेरे मित्र, भंते धर्मकीर्ति भारतीय civil services के इतिहास से आपका संक्षिप्त परिचय करवाएंगे. आप शुरू करिए धर्मकीर्ति.

धर्मकीर्ति- धन्यवाद कुमारिल.

ारत में व्यापार करने आई East India Company, उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक पूरे भारत की मालिक बन गई। ये साम्राज्य जीता तो Company की फौज ने था, लेकिन इस पर राज company के नौकरशाह/civil servants करते थे।

कुमारिल- कहने के लिए तो उनका काम Britain में बनाई नीतियों को लागू करना था, लेकिन वस्तुतः वे साम्राज्य के सर्वेसर्वा थे। उन दिनों एक पानी के जहाज को भारत से ब्रिटेन पहुँचने में 3-4 महीने लगते जब तक telegram ईजाद नहीं हो गया, Britain में बैठे company Directors का भारत के प्रशासन पर बहुत कम वास्तविक नियंत्रण था।

धर्मकीर्ति- भारत का राज-काज, काम-धंधे, युद्ध और व्यापार सम्बन्धी सारी जानकारी के लिए कंपनी के Directors उन्हीं नौकरशाहों पर निर्भर थे, जिन पर नियंत्रण रखना उनका काम था। इतिहासकार Clive Dewey की मानें तो ऐसी शक्तिशाली bureaucracy आज तक दुनिया के इतिहास में और कहीं नहीं हुई. Indian Civil Service को भारत में British राज का steel frame ी कहते थे, और heaven born service भी।

कुमारिल- शुरुआती दिनों में ये नौकरी सिफारिश से मिलती थी. अगर किसी कंपनी के director की आप पर कृपादृष्टि हो तो नौकरी आपकी, बस उसे एक लिखित हलफनामा देना पड़ता की इस नियुक्ति के बदले उसने एक रुपया भी घूस नहीं ली.

कुमारिल- नतीजा ये हुआ की कंपनी की civil सेवा में भ्रष्ट और नकारा पदाधिकारियों की भरमार हो गई. इतिहासकार Bernard Cohn के शोध के अनुसार, इस शुरुआती दौर में कंपनी के अधिकांश civil servant England के केवल 50-60 परिवारों से ताल्लुक रखते थे. काबिल भारतीयों को कुछ छोटे पद दिए जाते, लेकिन 500 पाउंड से अधिक वेतन वाले किसी भी पद पर भारतीयों को नियुक्त करना कंपनी ने वर्जित कर रखा था.

धर्मकीर्ति- इस सिफारिशी civil service की गुणवत्ता बढ़ाने के विचार से सन 1800 में भारत के तत्कालीन governor general लार्ड Wellesley ने कलकत्ता में fort William कॉलेज की स्थापना की. लेकिन कंपनी के directors को ये बात पसंद नहीं आई.

कुमारिल उनका डर था की कहीं भारत में trained civil servant उनकी बात सुनना बिलकुल ही न छोड़ दें. कंपनी ऐसे वफादार नौकरशाह चाहती थी जिनकी निष्ठा सिर्फ कंपनी के directors के प्रति हो. केवल दो साल चलने के बाद कलकत्ता का fort William College बंद हो गया.

धर्मकीर्ति उसकी जगह ली Haileybury College ने जिसे कंपनी ने अपनी देख रेख में london के पास बनवाया. यहां civil servants को पढ़ाई से ज्यादा राज करना सिखाया जाता. और उनके अंदर ऐसी भावना भारी जाती की वे शासक वर्ग से हैं, जिनके तौर तरीके साधारण लोगों से अलग होते हैं. पूरी training ऐसी थी जो वे विशिष्ट, और आम जनों से अलग दिखाई दें.

कुमारिल- 1830s तक कंपनी director द्वारा नामांकित किए जाने की पद्द्ति चल गई. लेकिन जब साम्राज्य बढ़ा तो उसके क़ाम-काज भी बढ़ गए. एक District Collector मजिस्ट्रेट का क़ाम भी करता था, लगान भी वसूलता था और कुछ सीमित दायरे में सजा भी देने का अधिकार अपने पास रखता था. कुल मिला कर अपने जिले का राजा था. ऐसे जिम्मेदारी वाले क़ाम के लिए और लायक़ लोगों की दरकार थी. इसलिए Directors द्वारा नियुक्ति के तरीके को ख़त्म कर, कंपनी 1853 से एक open competitive exam के द्वारा भर्ती करने लगी. 1858 में Haileybury College बंद कर दिया गया. अब भारतीय सिविल सेवा की competitive भर्ती परीक्षा हर साल इंग्लैंड में ली जाने लगी.

धर्मकीर्ति- और भारतीयों को क्या नौकरी देते थे?

कुमारिल- हम भारतीयों के लिए नौकरियों की एक अलग category बनाई थी, जिसे कहते थे Uncovenanted Civil Service.

धर्मकीर्ति – Uncovenanted?

कुमारिल-मतलब बिना किसी इकरारनामे या वादे की नौकरी. जिसको कभी भी हटाया जा सके.

धर्मकीर्ति कंपनी प्रशासन के भारतीयकरण की शुरुआत 1813 के बाद Warren Hastings ने शुरू की थी. चूंकि भारत में कानून अब भी पुराने चल रहे थे, इसलिए न्याय व्यवस्था में भारतीयों की ज़रूरत थी. बाद में Governor General लाट Bentick ने प्रशासन के निचले स्तरों पर भारतीयों की बहाली शुरू की, ताकि भारतीय समाज के भीतर पैठ बनाई जा सके. लेकिन Covenanted Civil Service को भारतीयों की पहुँच से बाहर ही रखा गया.

कुमारिल- जब 1853 में कंपनी ने competitive परीक्षा के माध्यम से Civil सेवा में भर्ती शुरू की औपचारिक तौर पर तो भारतीय civil सेवा के सबसे ऊँचे पदों पर बैठने के लिए eligible थे, लेकिन अंग्रेज़ ये exam जान बूझ कर इंग्लैंड में करवाते थे, ताकि भारतीय इसमें बैठ न सकें. भारतीय मध्य वर्ग के प्रतिनिधियों के बार बार आग्रह करने पर भी अंग्रेज़ ये परीक्षा भारत में करवाने के लिए तैयार नहीं हुए. एक compromise के तौर पर 1870 में अंग्रेजी सरकार ने ‘Statutory Civil Service’ की शुरुआत की. इस प्रावधान के अनुसार कुछ काबिल और प्रतिभावान भारतीय उच्च civil सेवा पदों पर बैठने के लिए नामांकित किए जा सकते थे. लेकिन इसका फायदा आम भारतीयों को न के बराबर मिला. अधिकांश ब्रिटिश civil servant इंग्लैंड के aristocratic/संभ्रांत परिवारों से आते थे, इसलिए भारत से भी वे civil सेवा join करने के लिए पुराने राजसी, शाही या ज़मींदारी खानदानों के लड़कों को ही चुनना पसंद करते थे.

धर्मकीर्ति- भारत के नए मध्य वर्ग में बढ़ते असंतोष को देखते हुए Governor General Lord Ripon ने प्रस्ताव दिया की Indian Civil Service की परीक्षा भारत में भी ली जाए. लेकिन पुराने ब्रिटिश अफसर इसके लिए बिलकुल तैयार न थे. सो ये परीक्षा 1922 तक England में ही ली जाती रही.

धर्मकीर्ति- इसके बावजूद 1922 तक civil services में तकरीबन 15 प्रतिशत पद भारतीयों ने अंग्रेज़ों की कठिन परीक्षा पास कर ले लिए थे. जाहिर सी बात है की इंग्लैंड जाकर ये परीक्षा देना केवल समाज के धनी अभिजात वर्ग के लिए ही संभव था. परीक्षा में घुड़सवारी और ball dancing जैसे विषय भी थे, जिनका मुख्य उद्देश्य ये निश्चित करना था की केवल पुराने पैसे वाले रईस खानदानों के लड़के इस परीक्षा को पास कर सकें.

कुमारिल- गाँधी के पहले का congress मुख्यतः वकीलों, डॉक्टर्स और पढ़े लिखे लोगों का राजनैतिक संगठन था. इसलिए civil सेवा के भारतीयकरण में उनकी विशेष रूचि थी. उनको उम्मीद थी की अगर ये परीक्षा भारत में होने लगी तो उनके बच्चे भी civil सेवा में बहाल हो सकेंगे. इस वर्ग के पढ़े लिखे होने के कारण, अपने अनुपात से ज्यादा शोर मचाने की क्षमता उनमें थी.

धर्मकीर्ति- इस मध्य वर्ग की वफादारी और सद्भावना जीतने के ख्याल से 1919 में civil सेवा परीक्षा भारत में भी करवाने का ऐलान ब्रिटिश सरकार ने कर दिया. भारत में पहली civil service परीक्षा फ़रवरी 1922 में Allahabad में हुई. इसके फलस्वरूप 1941 तक civil सेवा में भारतीयों की संख्या अंग्रेज़ अफसरों से अधिक हो गई.

कुमारिल -हालांकि इसका मतलब ये नहीं की civil सेवा का भारतीयकरण भी हो गया. नेहरू के शब्दों में Indian Civil Service was neither Indian nor Civil, nor a service. इसके तौर तरीके अंग्रेजी ही रहे.

धर्मकीर्ति- प्रशासन को elite बनाए रखने के लिए लंबे समय तक अंग्रेजी माध्यम और interview जैसे तरीकों से हिंदी माध्यम छात्रों को बाहर रखा गया. जो क़ाम पहले अंग्रेज़ करते थे, वो क़ाम आज़ादी के बाद brown साहिब करने लगे. Civil Services को पुराने खानदानों का विशिष्ट club बनाए रखने की पुरज़ोर कोशिश हुई.

कुमारिल लेकिन समाज के जनतांत्रिकरण ने धीरे-धीरे civil सेवा के रास्ते सब के लिए खोल दिए.

तो दर्शकों ये था भारतीय civil सेवा का संक्षिप्त इतिहास. ऐसे ही रोचक और ज्ञानवर्धक podcast सुनने के लिए subscribe करिए भारत की कहानी.

 

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