स त्रहवीं शताब्दी का सूरत दुनिया के सबसे अमीर शहरों में से एक था। तत्कालीन विश्व के सबसे समृद्ध साम्राज्य का प्रमुख बंदरगाह। गुजरात के व्यापारी दुनिया के सभी व्यापार मार्गों पर अपने जहाज भेजते थे। उनकी समृद्धि ऐसी थी की यूरोप के कई राजे-रजवाड़े शरमा जायें। लेकिन इसके बावजूद शहर की सुरक्षा का इंतजाम कुछ खास पुख्ता नहीं था। हालांकि सूरत का किला किसी घुड़सवार सेना के लिए अभेद्य था। लेकिन उससे सटा शहर तकरीबन पूरी तरह असुरक्षित था। नगर की सुरक्षा के लिए एक प्राचीर तक न बनाई गई थी। मुगल साम्राज्य तब अपनी शक्ति के चरम पर था । किसी ने यह कल्पना भी न की थी की उसकी वित्तीय राजधानी पर डाका डालने का दुस्साहस कोई राजा कर सकता है। मंगलवार, 5 जनवरी, 1664 की सुबह सूरत प्रशासन को ये खबर मिली की राजा शिवाजी अपनी सेना के साथ सूरत से 28 मील दक्षिण में डेरा डाले बैठे हैं और नगर पर चढ़ाई करने को तत्पर हैं। ये खबर सुनकर शहर में दहशत फैल गई। गरीबों को अपने कीमती माल-असबाब, बीबी-बच्चों के साथ ताप्ती नदी पार भागते देखा गया। अमीर नागरिक किले के कप्तान को घूस देकर अंदर शरण लेने की जुगत में लग गए।
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