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आर्य कौन थे? भारत में विदेशी कौन हैं और मूल निवासी कौन? प्राचीन भारत के इतिहास लेखन पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी

  भारत का आधुनिक इतिहास लेखन 19 वीं शताब्दी में यूरोपीय मूल के इतिहासकारों ने शुरू किया। उन्नीसवीं शताब्दी की पाश्चात्य सभ्यता इतिहास में गहरी रुचि रखती थी। पूरी दुनिया पर विजय प्राप्त करने के बाद अब गोरे अपनी सफलताओं का कारण समझने में लगे थे। आखिर वे कौन से कारण थे जो महज दो शताब्दियों के भीतर पाश्चात्य संस्कृति ने बाकी पूरी मानव जाति को मानव प्रयास और प्रगति के तकरीबन हर क्षेत्र में पीछे छोड़ दिया। बाकी दुनिया वह सब क्यों न कर सकी जो यूरोप में हुआ। इसका जवाब इतिहास, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, मानवशास्त्र और यहाँ तक कि जीव विज्ञान में भी ढूंढा जाने लगा-उन्नीसवीं शताब्दी के सामाजिक विज्ञान और मानविकी की हर धारा इस उभरते सवाल से प्रभावित रही। ऐसे बौद्धिक परिवेश में नस्ल और जाति का अध्ययन एक नए विज्ञान के रूप में उभरा। नस्ल विज्ञान (race sciences) और नस्ल अध्ययन   ( racial studies ) विशुद्ध रूप से एक यूरोपीय आविष्कार है जिसपर आधुनिक भाषा विज्ञान (भाषाओं का अध्ययन), इतिहास, लिनियस के विकास के सिद्धांत, और स्पेंसर के सामाजिक डार्विनवाद का प्रभाव पड़ा। नस्ल या ‘रेस’ की सटीक परिभाषा करना