धर्मकीर्ति- नमस्कार मित्रों. स्वागत हैं
आपका भारत की कहानी में. Congress
की स्थापना दिसंबर 1885 में मुंबई (तब के Bombay) में एक राष्ट्रीय
अधिवेशन में हुई. इसके पहले president
हुए w c बैनर्जी. लेकिन इस राष्ट्रीय अधिवेशन के पीछे असली मेहनत थी एक retired British civil servant AO Hume की. आज की left v
right debate का विषय है Congress की स्थापना
का प्रकरण. मैं धर्मकीर्ति इस विषय पर वामपंथी पक्ष रखूँगा और मेरे साथी कुमारिल भट्ट right wing पक्ष से विवेचना
करेंगे.
कुमारिल – धन्यवाद धर्मकीर्ति. कांग्रेस की
स्थापना में एक retired British Civil
Servant की भूमिका सवाल तो खड़े करती है. AO Hume सिर्फ पृष्ठभूमि
में क़ाम नहीं कर रहा था, बल्कि इस राष्ट्रीय अधिवेशन का मुख्य संयोजक था. उन दिनों, जब यातायात
इतना कठिन था, Hume ने खुद Bombay,
Calcutta और Madras की यात्रा की और Congress की स्थापना
में भाग लेने के लिए भारतीय प्रतिनिधियों को तैयार किया. इनमें से अधिकांश अंग्रेजी शिक्षा
प्राप्त किए बाबू लोग थे – वकील, doctors,
पत्रकार और बुद्धिजीवी. ऐसा कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी
की AO Hume की भागीदारी के बिना शायद ये अधिवेशन नहीं हो पाता.
धर्मकीर्ति – Congress की स्थापना
में AO Hume की भूमिका ने कई conspiracy theories को जन्म दिया
है. इनमें से सबसे मशहूर है तथाकथित safety
valve theory, जिसका आधार है William Wedderburn द्वारा लिखित AO Hume की जीवनी, जो 1913 में प्रकाशित हुई. इस किताब के अनुसार AO Hume को करीब 9 volume लंबी एक secret report मिली
थी.
कुमारिल – इस secret report में
1857 की तर्ज पर एक देश व्यापी विद्रोह का ज़िक्र था. ऐसा अंदेशा था की भारत में एक
भयानक विद्रोह होने वाला है, जिससे अंग्रेज़ खासे घबराए हुए थे. ऐसे में तत्कालीन
गवर्नर जनरल lord Dufferin के साथ मिलकर AO
Hume ने कांग्रेस पार्टी के गठन की साज़िश रची. Brown साहबों के इस
संगठन को एक safety valve की तरह क़ाम करना था. जैसे pressure cooker का safety valve भीतर
के pressure को थोड़ा थोड़ा छोड़कर विस्फोट रोकता है
वैसे ही congress का क़ाम था british
हुकूमत के आज्ञाकारी opposition होना. वे लड़ने का
स्वांग रच कर छोटी छोटी मांगे मनवा लेते और जनता को लगता की अंग्रेज़ों के विरुद्ध भीषण
लड़ाई लड़ी जा रही है.
धर्मकीर्ति- मसाला तो खूब
अच्छा तैयार किया है आपने. अब ज़रा दर्शकों को ये भी बता दीजिये की AO Hume को ये ख़ुफ़िया
reports कहाँ से और कैसे मिल रही थीं.
कुमारिल 😂 तिब्बत के महात्माओं
से, जो सैकड़ों साल पहले मर चुके थे. हालांकि AO Hume खुद कभी तिब्बत नहीं गए. उनकी जीवनी लिखने वाले के अनुसार
ये reports telepathy के द्वारा उन तक भेजी जा रहीं थीं.
धर्मकीर्ति- और ये बात खुद
AO Hume ने नहीं कही. इस theory का ज़िक्र सिर्फ Wedderburn की लिखी AO Hume की जीवनी में
आता है.
कुमारिल – safety valve के सिद्धांत
को गंभीरता से लेना मुश्किल ही है. आजादी के बाद तब के गवर्नर जनरल Dufferin की diary और निजी कागज़ात
इतिहासकारों को उपलब्ध हो गए. इनसे पता चलता है की AO Hume Congress की स्थापना
के सिलसिले में Dufferin से मिले ज़रूर थे. लेकिन Dufferin को उनकी बातें
पसंद नहीं आई. बल्कि Hume से मिलने के बाद Dufferin ने Bombay के गवर्नर को पत्र लिखकर इस अधिवेशन के बारे में आगाह किया
और delegates पर पैनी नज़र बनाए रखने की हिदायत दी.
धर्मकीर्ति- तिब्बती महात्माओं
की telepathy की theory को अभी के लिए side रख कर असली मुद्दे पर आते हैं.
कुमारिल – जी बिलकुल. हालांकि की
इसमें कोई संदेह नहीं की British प्रशासन congress को शुरुआत से शक की निगाह से देखता था, लेकिन आपको
ये बात अजीब सी नहीं लगती की congress की स्थापना में सबसे ज्यादा active role एक retired अंग्रेज़ civil servant ने लिया. वो भी ऐसा
जिसने खुद जवानी में 1857 के बागियों से लोहा लिया था ग़दर में उसका सगा भाई मारा गया
था. आखिर ऐसा इंसान भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की नींव क्यों रखेगा?
धर्मकीर्ति- 1857 का ग़दर बीते
28 साल हो चुके थे. AO Hume विचार से एक radical
liberal था. उन दिनों जनता का राज एक नया
विचार था. Europe के भी अधिकांश देश राजतन्त्र थे. Britain से हमेशा वामपंथी विचारों वाले
न्याय प्रिय लोग भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में शरीक होते रहे हैं. AO Hume कई बार प्रशासन
के भीतर भारतीयों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठा चुका था. अंत में तंग आकर तब के गवर्नर
जनरल lord lytton ने उसे demote कर दिया. इसके कुछ सालों बाद Hume ने retirement ले ली और congress के गठन के क़ाम
में जुट गया. किसी आदमी की पूरी ज़िन्दगी को साज़िश तो नहीं कह सकते.
कुमारिल- आपने तो Hume को क्रान्तिकारी
बना दिया. कांगेस के president WC बनर्जी ने अधिवेशन के दौरान साफ साफ press से कहा की कोई
इस संगठन को षड़यंत्रकारियों और राजद्रोहियों की टोली समझने की भूल न कर बैठे., ‘this is not a nest of conspirators and
disloyalists…we are thoroughly loyal and consistent well wishers of the British
government. हम तो भारत में un-British rule की खिलाफत
करते हैं.
धर्मकीर्ति- मतलब more loyal than the king. हम इतने ज्यादा अंग्रेज़ बन चुके हैं की अब तुम्हें ही बताएंगे की कहाँ तुम्हारा
क़ाम अंग्रेज़ों जैसा नहीं है.
कुमारिल – सच कहूं तो
मुझे तो सुन कर ही घिन आती है. क्या ऐसे लोगों का कोई सम्मान कर सकता है?
धर्मकीर्ति- इन लोगों ने
ये सम्मान अपनी मेहनत से जीता था. ये तब के सबसे सफल वकील थे, डॉक्टर थे, बुद्धिजीवी
थे. इन्होंने अंग्रेज़ों के professions
में नाम कमा कर हमारे अंदर आत्मसम्मान जगाया. मैं इनको क्रान्तिकारी
नहीं कहता. लेकिन ऐसा कोई बड़ा दावा इनका खुद भी नहीं था. इसके पहले ऐसा कोई संगठन बनाया
नहीं गया था. क्या पता अंग्रेज़ क्या करें? इसलिए ऐसी बातें press में बोली गईं.
कुमारिल- press में कही गईं
बातों का ज़रूरत से ज्यादा मतलब निकालना सही नहीं होगा. यक़ीनन ये कोई चाटुकारों की टोली
नहीं थी. जिससे जो बन सकता है करता है. ये लोग क्रांति करने नहीं निकले थे. पूरा विचार
था की एक अखिल भारतीय platform हो जहाँ देश भर के लोग अपने मुद्दे प्रकाश में ला सकें. 1857 के ग़दर का युग
अब बहुत पीछे रह गया था. अब हम पार्टी politics
के युग में प्रवेश कर रहे थे. और congress की स्थापना इस दिशा में पहला
कदम था.
धर्मकीर्ति- जी बिलकुल. चाहे left हो या right, पार्टी सब बनाते
हैं. हम इस चीज को कितना for
granted लेते हैं. पार्टी बनाना.. लेकिन 1857
के पहले ऐसा नहीं होता था. लोगों की पहचान का दायरा अपनी बिरादरी, पाटीदारी, जात और गाँव
होता था. आपके आस पास के लोग जिनको आप जानते हैं
जिनसे मिलते हैं.
कुमारिल- पर पार्टी ऐसे
लोगों की मंडली है जो भले ही एक दूसरे को निजी तौर पर न जानते हों, लेकिन साझे
हितों की डोर से एक दूसरे से जुड़े होते हैं. अपने हक़ और अधिकार के लिए सरकार
से कुछ मांगने के लिए जमा होते हैं. साथ ही सरकार और जनता को ये जताने का उपक्रम करते हैं की
सरकार का काम उन सिद्धांतों से मेल नहीं खाता जिन पर वह टिके होने का दावा करती है।
अंग्रेज़ rule of law और न्यायपूर्ण राज कायम करने की की दुहाई देते थे, लेकिन शुरआती
कांग्रेसी जनता के सामने खुलासा करते की दरअसल उनका राज कितना निरंकुश और दमनकारी
है।
धर्मकीर्ति- एक आधुनिक शैली
की राजनीति की बुनियाद हमारे कांग्रेसी पूर्वज रख रहे थे. आज आप चाहे किसी भी पार्टी के
हों, उन्हीं तरीकों का इस्तेमाल करेंगे जिनकी इन लोगों ने शुरुआत की.
कुमारिल – यानी भाषण देना, सरकार से सवाल
पूछना, press में हल्ला मचाना, धरना देना, गिरफ़्तारी देना. Constitutional form of politics- संवैधानिक पद्द्ति की राजनीति में हम congress के गठन के बाद
प्रवेश करते हैं. इसके पहले लड़ाई राज बचाने, ज़मीन बचाने, धर्म बचाने की थी. और इसके आगे देश बनाने की, और आधुनिक राष्ट्र
जिसमें पार्टी politics वाली राजनीति हो.
धर्मकीर्ति- इसलिए इस congress को आज के congress से न ही जोड़
कर देखा जाए तो ठीक. सही मायने में वे left और right दोनों के पूर्वज थे.
कुमारिल – इन लोगों ने
एक अखिल भारतीय संगठन की नींव रख कर भावी भारत राष्ट्र का चित्र पूरे भारत के सामने
रख दिया. भले वे brown साहिब रहे हो, लेकिन भविष्य के क्रान्तिकारियों ने जिस आज़ाद भारत के लिए
युद्ध किया उसकी पहले पहल परिकल्पना इन्हीं लोगों ने की.
धर्मकीर्ति- बल्कि ऐसा कह
सकते हैं की आधुनिक भारत के उभरने का ऐलान इस संगठन की स्थापना के साथ हुआ. इसके पीछे हम
अवध, बंगाल, पंजाब, राजपूताना, गुजरात आदि सुनते हैं. लेकिन इसके बाद भारत की परिकल्पना
उभरने लगती है.
कुमारिल – इसलिए left right side कर इस
घटना को आधुनिक भारत के उद्घोष के रूप में कुछ right wing इतिहासकारों चित्रित किया
है.
धर्मकीर्ति- जी बिलकुल. अधिकांश वामपंथी
इतिहासकार भी ऐसा ही मानते हैं. तो दर्शकों ये था कांग्रेस की स्थापना का left right शास्त्रार्थ. हमारे चैनल
पर इतिहास का left right जारी रहेगा. ऐसे ही और podcast
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करिए भारत की कहानी धन्यवाद.
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