द ुनिया के हर धर्म में दो बातें जरूर पाई जाती हैं। ईश्वर में आस्था और आत्मा की अमरता में विश्वास। खासकर आत्मा का अमरत्व धार्मिक चेतना की विशिष्ट पहचान है। कोई मानव मरना नहीं चाहता, सभी ये उम्मीद पालते हैं की मरने के बाद भी कहीं बचे रहेंगे। और ऐसी ही दिलासा धर्म उनको देते भी हैं - की तुम्हारा पुनर्जन्म होगा, तुम वैकुंठ में वास करोगे , जन्नत मकानी बनोगे , heaven में जाओगे आदि-आदि। लेकिन बौद्ध धर्म ऐसी कोई उम्मीद नहीं देता। मृत्यु का मतलब अंत ही होता है; जैसे किसी मोमबत्ती का बुझ जाना; अभी थे, अगले क्षण खत्म। उसके बाद कुछ नहीं। न कुछ सुनाई देगा, न कुछ महसूस होगा। और शरीर धरती में विलीन हो जाएगा। बौद्ध क्षणिकवाद ( philosophy of momentariness ) बौद्ध दर्शन एक प्रकार का क्षणिकवाद है। क्षणिकवाद? आइए इस सिद्धांत को उदाहरणों से समझें नीला आकाश देखिए- इसका नीलापन कहाँ है? अगर हम हवाई जहाज से ढूँढने जायें तो कहीं नहीं मिलेगा। नीलापन सूर्य की किरणों के बिखराव की प्रक्रिया का प्रभाव है। किरणों का बिखराव लगातार हो रहा लेकिन नीलापन हमें किसी स्थाई चीज की तरह दिखाई
Inspired by Amar Chitra Katha; Backed by Solid Evidence