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शिवाजी का मुग़ल सूरत पर आक्रमण - 1664

 


त्रहवीं शताब्दी का सूरत दुनिया के सबसे अमीर शहरों में से एक था। तत्कालीन विश्व के सबसे समृद्ध साम्राज्य का प्रमुख बंदरगाह। गुजरात के व्यापारी दुनिया के सभी व्यापार मार्गों पर अपने जहाज भेजते थे। उनकी समृद्धि ऐसी थी की यूरोप के कई राजे-रजवाड़े शरमा जायें।

लेकिन इसके बावजूद शहर की सुरक्षा का इंतजाम कुछ खास पुख्ता नहीं था। हालांकि सूरत का किला किसी घुड़सवार सेना के लिए अभेद्य था। लेकिन उससे सटा शहर तकरीबन पूरी तरह असुरक्षित था। नगर की सुरक्षा के लिए एक प्राचीर तक न बनाई गई थी। मुगल साम्राज्य तब अपनी शक्ति के चरम पर था। किसी ने यह कल्पना भी न की थी की उसकी वित्तीय राजधानी पर डाका डालने का दुस्साहस कोई राजा कर सकता है।

मंगलवार, 5 जनवरी, 1664 की सुबह सूरत प्रशासन को ये खबर मिली की राजा शिवाजी अपनी सेना के साथ सूरत से 28 मील दक्षिण में डेरा डाले बैठे हैं और नगर पर चढ़ाई करने को तत्पर हैं।   

ये खबर सुनकर शहर में दहशत फैल गई। गरीबों को अपने कीमती माल-असबाब, बीबी-बच्चों के साथ ताप्ती नदी पार भागते देखा गया। अमीर नागरिक किले के कप्तान को घूस देकर अंदर शरण लेने की जुगत में लग गए।

शहर के गवर्नर इनायत खान ने कूटनीति से काम लेने की सोची। उसने फिरौती की पेशकश के साथ अपना एक कारिंदा महाराज शिवाजी के पास भेजा। लेकिन शिवाजी शहर पर चढ़ाई करने का मन बना चुके थे। खबर आई की इनायत खान के कारिंदे को हिरासत में ले लिया गया है, और शिवाजी तेजी से सूरत की तरफ बढ़ रहे हैं।

इनायत खान एक कायर इंसान था। उसके अंदर लड़ाई करने का हौसला बिल्कुल न था। जैसे ही उसे अंदाजा हो गया की शिवाजी बातचीत से नहीं मानने वाले, उसने सूरत नगर खाली कर दिया और किले के अंदर जाकर बंद हो गया।

मुग़ल साम्राज्य का मुख्य बंदरगाह अब महाराज शिवाजी और उनके बारगीरों के हवाले था। इनायत खान जिस पद पर था, उससे अपेक्षित था की वह हमेशा 500 घुड़सवार सैनिक तैयार रखे, और इसके उसे बाकायदा शाही खजाने से पैसे मिलते थे। लेकिन इनायत खान एक लंबे समय से सरकारी राशि गबन कर रहा था। अब उसके पास शिवाजी से मुकाबला करने के लिए पर्याप्त सैनिक थे ही नहीं।

शहर के नागरिकों के पास शिवाजी की सेना का प्रतिरोध करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं थे। नगर के अधिकांश धनाढ्य रईस मुस्लिम, जैन, और बनिया व्यापारी थे, जो आम तौर पर सुरक्षा के लिए सरकारी तंत्र पर निर्भर रहने के आदि थे। हालांकि उनकी गिनती निर्बल प्रजा में नहीं थी। ये साम्राज्य का सबसे धनाढ्य वर्ग था; इनमें से कई शाही खजाने और शाहज़ादों को सूद पर कर्ज दिया करते थे। लेकिन वे योद्धा नहीं थे, और न उनके पास कोई सेना थी.

शहर में एकमात्र यूरोपियन मोहल्ला ही था जो अपनी सुरक्षा करने का माद्दा रखता था. शाही फरमान पर बसे अंग्रेज़ और डच व्यापारी हथियारों से लैस थे. दूर देश से आए ये नाविक युद्ध कला में सिद्ध हस्त थे. और सबसे बड़ी बात की उनके पास समुन्द्र में लंगर डाले जहाज़ थे, जिनमें आवश्यकता पड़ने पर भाग कर शरण ली जा सकती थी.

ब्रिटिश कारखाने के कप्तान सर जॉर्ज ऑक्सेंडेन ने तकरीबन 200 बन्दुकधारी नाविकों की एक टुकड़ी जुटा ली. फिर उसने ब्रिटिश मोहल्ले की चारों ओर एक रक्षात्मक पंक्ति तैयार करवाई, जिसे बन्दूको, और जहाजों से उतारी गई, 5-6 छोटी तोपों से लैस कर दिया गया. ऑक्सेंडेन का हौसला इतना बुलंद था की उसने अपने सिपाहियों के साथ शहर भर में तुरही नगाड़े के साथ मार्च किया और ऐलान कर दिया की शिवाजी से लोहा लेने के लिए अंग्रेज़ सिपाही तैयार हैं. अंग्रेज़ों की देखा-देखी डच, र्मेनियाई और तुर्की व्यापारी भी अपने-अपने इलाकों में किलेबंदी करने में जुट गए.

महाराज शिवाजी ने अपने हमले की शुरुआत केवल 4000 चुने हुए घुड़सवारों के साथ की थी. लेकिन सूरत पहुँचते -पहुँचते जव्हार, रामनगर और ठाणे के ज़मींदार भी उनसे मिले. अब उनके लड़ाकों की संख्या 10000 के करीब पहुँच गई थी.

5 जनवरी की सुबह तकरीबन 11 बजे शिवाजी ने नगर में प्रवेश किया और एक बगीचे में अपनी फौज के साथ डेरा डाला.

अपने आगमन से एक रात पहले शिवाजी ने इनायत खान और नगर के रईस सेठों को संदेश भेजा था की  जब उनकी सेना नगर में प्रवेश करे, वे खुद आकर शिवाजी से मिलें और उनकी दी गई शर्तों को मानें, अन्यथा गोली-तलवार चलने और रक्त-पात के वे स्वयं जिम्मेदार होंगे.

चूंकि इस संदेश का कोई जवाब नहीं दिया गया इसलिए शिवाजी के घुड़सवारों ने नगर में प्रवेश करते ही घरों को लूटना और उनमें आग लगाना शुरू कर दिया.

शिवाजी अपने साथ बन्दुकचियों की भी एक टुकड़ी लेकर आए थे. उन्हें आदेश था की वे लगातार किले की तरफ फायरिंग करें ताकि किले से सैनिक बाहर आने की कोशिश कर सकें. इसके जवाब में किले से इनायत खान ने किले की तोपों से गोले दगवाए, लेकिन इनमें से ज्यादातर ने शिवाजी की सेना का नुकसान करने के बजाए नगर की इमारतों का ही ज्यादा नुकसान किया.

अगले चार दिन शिवाजी के बारगीरों ने नगर में जमकर उत्पात किया। हर दिन शहर के नए कोने से भीषण आग उठती, हर दिन कुछ नई इमारतें ध्वस्त होती। जब तक शिवाजी के घुड़सवारों का मन भरता नगर का दो-तिहाई हिस्सा धूल और राख में तबदील हो गया। एक अंग्रेज पादरी ने अपनी डायरी में लिखा, ‘गुरुवार और शुक्रवार की रात भयंकर आग लगी। लपटें इतनी ऊंची और प्रलयंकारी थीं की रात को दिन होने का आभास होता, और दिन में धुएं के मोटे बादल सूरज को ढंके रहते।

बोहारजी बोहरा की भव्य हवेली डच कारखाने के नजदीक स्थित थी। बोहरा दुनिया के सबसे रईस व्यापारियों में से एक थे। बारगीरों ने उनकी हवेली को दिन-रात लूटा। जब लूटने को कुछ न बचा, तो गड़े खजाने ढूँढने के लिए मकान की फर्श और दीवारें खोद दी गईं। एक डच चश्मदीद के अनुसार शिवाजी के सैनिक हवेली से सोने से भरे छह बड़े मटके, बड़े मोतियों से भरे परात और अतुलनीय धन-राशि लूट ले गए।

नगर के एक अन्य नामी रईस हाजी सैयद बेग की हवेली पर सशस्त्र अंग्रेज सैनिकों का पहरा था। शुरुआती झड़प में एक मराठा सैनिक घायल हो गया। इससे क्रुद्ध होकर शिवाजी ने अंग्रेजों के पास संदेश भेजा की मराठा सैनिक को घायल करने के जुर्म में अंग्रेज तीन लाख रुपये नकद भरें और हाजी बेग की हवेली से तत्काल पीछे हट जाएं।  और यदि ऐसा न किया गया तो वे स्वयं आएंगे और ब्रिटिश कारखाने में मौजूद एक-एक सैनिक का सिर धड़ से अलग कर देंगे।

अंग्रेजों के नेता ओक्सेनडेन ने अगली सुबहवाब भेजा, कि शिवाजी बेझिझक ब्रिटिश कारखाने पर हमला करें, उन्हें अंग्रेज सिपाही मुकाबले को तैयार मिलेंगे। इस गुस्ताखी का महाराज शिवाजी ने कोई जवाब नहीं दिया। सूरत नगर में अभी लूटने को बहुत कुछ था। जोश और अहंकार से प्रेरित होकर अंग्रेजों के बंदूकों और तोपों से लैस कारखाने पर हमला करना कोई बुद्धिमानी का कार्य नहीं था।

इस बीच किले में बंद इनायत खान ने शिवाजी के साथ शर्तों पर चर्चा करने के लिए एक वार्ता दल भेजा। लेकिन उसकी गुप्त योजना विश्वासघात से शिवाजी की हत्या करवाने की थी। ये प्रयास विफल रहा और सभी हमलावर पकड़ लिए गए। महाराज शिवाजी के कहने पर उनके सैनिकों ने पूरे वार्ता दल की हत्या नहीं की। पूछताछ के बाद उनमें से चार के सिर कलम कर दिए गए, और 24 के हाथ काट कर उन्हें छोड़ दिया गया।

सूरत की लूट से करोड़ों रुपये शिवाजी के हाथ लगे। नगर में दाखिल होने के बाद शिवाजी ने सार्वजनिक घोषणा की थी कि वह शहर के व्यापारियों और अंग्रेजों को नुकसान  पहुंचाने की मंशा से नहीं आ, बल्कि मुग़लों से अपना हिसाब पूरा करने के लिए आए हैं। लेकिन एक अंग्रेज कारिंदे ने अपनी डायरी में लिखा की ‘सब कुछ देख कर लगता हैं की एक मात्र धन लूटना ही शिवाजी के सूरत आने का प्रमुख उद्देश्य था। एक बूढ़ा व्यापारी जो आगरा से 40 बैलगाड़ियाँ भर कर कपड़े लाया था, शिवाजी के सैनिकों के हत्थे चढ़ गया। नगद राशि न दे पाने के कारण क्रुद्ध सैनिकों ने उसकी बैलगाड़ियों में आग लगा दी, और उसका दाहिना हाथ काट लिया’।

एक यहूदी रूबी व्यापारी ने लिखा, "मिस्टर स्मिथ मौजूद थे जब मैंने शिवाजी की मौजूदगी में एक ही दिन में 26 से अधिक व्यापारियों को अपने हाथों, और करीब उतनों ही को अपने सिर गंवाते देखा। जिसे भी शिवाजी के सामने लाया गया, उससे ऊंची फिरौती की मांग की गई। न भर पाने पर जान से हाथ धोना पड़ता।

आगे वह यहूदी व्यापारी लिखता है की शिवाजी के सैनिकों का तरीका ये था की पहले वे किसी व्यापारी का घर लूट लेते, और फिर घर में आग न लगाने की शर्त के तौर पर ऊपर से और खजाने की फरमाइश करते। मनमाना पैसा दे देने पर भी वे अंत में मकान में आग लगा ही देते।  

सूरत में चार दिन रहने के बाद, 10 जुलाई, 1664 की सुबह शिवाजी अचानक अपनी सेना के साथ नगर से कूच कर गए। ऐसी खबर आई थी की एक शाही सेना राहत के लिए नगर की ओर बढ़ रही है.

शाही सेना के आते-आते सात दिन और लग गए। तब जाकर नगर का कायर गवर्नर इनायत खान किले से बाहर निकला। उसे देख कर लोग मुर्दाबाद के नारे लगाने लगे, और उसकी तरफ धूल-मिट्टी फेंकने लगे। इससे क्रुद्ध होकर इनायत खान के लड़के ने भीड़ की तरफ गोली चला दी जिससे एक गरीब हिन्दू व्यापारी की मौत हो गई।

नगरवासियों की तकलीफ को देखते हुए बादशाह ने एक वर्ष के लिए नगर के व्यापारियों का राजकीय शुल्क माफ कर दिया, तथा अंग्रेज और डच व्यापारियों की बहादुरी को पुरस्कृत करते हुए भविष्य के लिए उनका आयात शुल्क डेढ़ प्रतिशत कम कर दिया।

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