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1857 का विद्रोह: left और right इतिहासकारों की समीक्षा

  न मस्कार मित्रों , स्वागत है आपका भारत की कहानी में . आज की चर्चा का विषय है 1857 का विद्रोह . मैं कुमारिल भट्ट right wing दृष्टिकोण प्रस्तुत करूँगा और मेरे साथी धर्मकीर्ति वामपंथी नज़रिये से विश्लेषण करेंगे . धर्मकीर्ति – नमस्कार , आप शुरू करिए कुमारिल कुमारिल - सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी बूढ़े भारत में आई फिर से नई जवानी थी गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी चमक उठी सन सत्तावन में , वह तलवार पुरानी थी सन 1857 की गर्मियों में उत्तर भारत से ग़दर की ऐसी ज्वाला उठी जिसने भारत में एक सौ साल से काबिज़ ब्रिटिश राज को हिला कर रख दिया . अगले एक साल के लिए आज के UP, Bihar, और मध्य प्रदेश के कई इलाके ब्रिटिश हुकूमत से स्वतन्त्र हो गए . अंग्रेजों से हम मुकाबला तो लगातार करते रहे थे , पर इतने बड़े स्तर पर और इतने वृहत भौगोलिक पैमाने पर ब्रिटिश राज को कभी चुनौती नहीं मिली थी . धर्मकीर्ति- अंग्रेजों ने इस गदर को सिर्फ एक सिपाही बगावत की संज्ञा देनी चाही . ये सच है की क्रांति का आग़ाज़ east india company के सिपाहियों